उत्तर प्रदेश. नारियल और काजू की कुछ प्रजातियों को कर्नाटक स्थित सेंट्रल प्लांटेशन क्राप रिसर्च इंस्टीट्यूट कासरगोड ने विकसित किया है. अब इससे देश के समुद्र तटीय राज्यों में नारियल और काजू के बौने पेड़ों की खेती कर आमदनी में कई गुना की वृद्धि कर सकेंगे. कृषि वैज्ञानिकों के इस कमाल से बागवानी करने वालों के लिए यह एक अच्छा अवसर साबित होगा.
आमतौर पर 30 से 40 फुट ऊंचे नारियल के पेड़ों की लंबाई घटाकर पांच फुट तक कर दी गई है, जबकि इससे उत्पादकता में 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह काजू के ऊंचे और मोटे पेड़ों को पांच से छह फीट करने में सफलता मिली है. काजू की खेती में आए इस क्रांतिकारी परिवर्तन से प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता में 300 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कुछ जगहों पर इन बौने पेड़ों की खेती की जा रही है. आने वाले दिनों में बड़े पैमाने पर इन्हें लगाया जाएगा.
इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) के उपमहानिदेशक डॉ. आनंद कुमार सिंह ने बताया है कि नारियल के पेड़ों की बौनी प्रजातियों के विकसित होने से खेती की लागत में कटौती हुई है और उत्पादकता को बढ़ाने में मदद मिली है. काजू की बौनी प्रजाति की खेती से किसान की आमदनी में पांच गुना से भी अधिक की वृद्धि संभव है. समय रहते परंपरागत नारियल और काजू के बागानों की जगह इन बौनी प्रजातियों का क्षेत्रफल बढ़ाना होगा, ताकि घरेलू और वैश्विक मांग को पूरा करने में मदद मिले. इन नकदी फसलों की खेती के लिए यह किसी क्रांति से कम नहीं है.
भारत में नारियल का 6000 हजार करोड़ का सलाना निर्यात
नारियल की खेती की लागत में 40 फीसद खर्च फलों की तुड़ाई में होता है. नारियल के बौने पेड़ों की वजह से इस मामले में बड़ी बचत होगी. साथ ही कम रकबा में ज्यादा पौधे लगाना संभव होगा. इन पौधों की देखरेख करना आसान है, जिससे इनमें रोगों की आशंका भी बहुत कम हो गई है. नारियल उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में अव्वल है, जबकि फिलिपींस और इंडोनेशिया दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं. नारियल का सालाना निर्यात लगभग 6000 करोड़ रुपये है, जिसमें 3000 करोड़ रुपये का अकेले नारियल क्वायर का निर्यात होता है. देश में कुल 21 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है.
भारत से हर साल 500 करोड़ रुपयों के काजू का होता है निर्यात
काजू की खेती आमतौर पर केरल, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, बंगाल और झारखंड के कुछ क्षेत्रों में होती है. देश में काजू की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 750 किलो ही है, जबकि वैश्विक उत्पादकता दोगुना है. भारत से सालाना 500 करोड़ रुपये का काजू निर्यात किया जाता है, जो साल दर साल घट रहा है. इसकी बड़ी वजह काजू की घरेलू मांग में भारी वृद्धि करना है. घरेलू और वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित बौनी प्रजाति बहुत कमाल दिखा सकती है.
बौनी प्रजाति की फसलों के प्रबंधन और फलों की तुड़ाई के खर्च में कमी आएगी. कम रकबा में ज्यादा पौधे लगाए जा सकेंगे. बता दें कि प्रति हेक्टेयर जहां परंपरागत पेड़ मात्र 177 लगाए जा सकते हैं. वहीं, नई बौनी प्रजाति के 1600 पौधे लगाए जा सकेंगे. वर्तमान उत्पादकता 724 किलो प्रति हेक्टेयर है, जिसे नई प्रजाति से प्रति हेक्टेयर 2432 किलो किया जा सकता है.