वाराणसी: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की बर्फीली वादियों मेंं रहना आम बात नहीं है. यहां के लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है. वहीं भीषण ठंड के चलते लोगों को जिंदगी दुश्वार रहती थी. लेकिन एक वैज्ञानिक की कोशिश से उनकी दिनचर्या आसान हो गई है. ये चमत्कार डॉ. लाल सिंह (Dr Lal Singh) और उनके NGO ‘हिमालयन रिसर्च ग्रुप’ ने किया है. एक इजाद ने सुदूर पहाड़ी इलाकों में रहने वालों की जिंदगी आसान बना दी.
अनूठा अविष्कार
आपको बता दें कि आज मंडी और आसपास के जिलों में रहने वाले लोग डॉक्टर लाल का आभार जताते हैं. उनका कहना है, ‘हमारे यहां साल भर कड़ाके की ठंड पड़ती है और बिना गर्म पानी के कोई भी काम करना संभव नहीं है. पहले उन्हें हर सुबह जंगल से लकड़ियां लाने जाना पड़ता था. जिस कारण खेती और बाकी कामकाज में देरी होती थी. साथ ही पीने का पानी तैयार करने से लेकर खाना बनाने तक उनका काफी समय यूं ही बर्बाद हो जाता था. लेकिन अब सब कुछ आसान हो गया है.
मालूम हो कि हिमालयन बेल्ट पर लंबे समय से काम कर रहे डॉ. लाल सिंह और उनके एनजीओ ‘हिमालयन रिसर्च ग्रुप’ ने एक सोलर-वॉटर हीटिंग सिस्टम बनाया है, जो चंद मिनट में 15 से 18 लीटर पानी गर्म कर देता है. इस सिस्टम को ‘सोलर हमाम’ (Solar Hamam) नाम दिया है. उनकी टीम ने हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और उत्तराखंड में इसकी सैकड़ों यूनिट्स लगाई हैं.
वहीं डॉक्टर लाल का कहना है कि NGO ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मशरूम फार्मिंग सिखाई. नए नए काम सिखाने के लिए जब वर्कशॉप शुरू करते थे तो कई महिलाएं हमेशा देर से आती थीं. वजह पूछी तो पता चला कि जलावन के लिए लकड़ियों की दिक्कत है. इसके बिना गुजारा नहीं है तो लकड़ी लाने 5 से 10 किलोमीटर दूर जंगल में जाना पड़ता है. जम्मू एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, हिमाचल प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार की मदद से शिमला, मंडी, कुल्लू जैसी कई जगहों पर सैकड़ों यूनिट्स लगीं.
प्रोडक्ट की क्या है खासियत
डॉक्टर लाल ने बताया कि इसमें पहले बैच में पानी गर्म होने में 30-35 मिनट लगते हैं. वहीं, दूसरी बार में सिर्फ 15-20 मिनट. इससे एक दिन में सौ लीटर पानी आसानी से गर्म किया जा सकता है, जो एक परिवार के लिए काफी है. ‘सोलर हमाम’ (Solar Hamam), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोलर एनर्जी, गुड़गांव से मान्यता प्राप्त है और यह 67 फीसदी दक्ष है. इसमें पानी को 80 से 90 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जा सकता है, जो फिलहाल किसी भी कमर्शियल सिस्टम से करीब 20 फीसदी ज्यादा है. एक बार पानी गर्म हो जाने के बाद, उसे खाना पकाने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे हजारों टन लकड़ी की बचत हो चुकी है. इसकी मदद से लोगों की जलावन पर निर्भरता 40 फीसदी तक कम हुई है.