वाराणसी: भारत को आजाद हुए 75 साल हो गये है, जिसे देश के जांबाज क्रांतिकारियों द्वारा ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेकर स्वतंत्र कराया गया था. आजादी के इतने सालों के बाद भी देश के कई शहरों और कस्बों में ऐसी सड़कें, मुहल्ले, भवन इत्यादि मौजूद हैं जो आज भी अंग्रेजी हुकुमत के नाम पर है.
गोरखपुर का पेपेगंज (जिसे पीपीगंज के नाम से जाना जाता है)
गोरखपुर जिले का पीपीगंज कस्बा दरअसल अंग्रेज अफसर विलियम क्लिस्टन पेपे के नाम पर नामांकित है. विलियम क्लिस्टन पेपे बर्डपुर इस्टेट का मैनेजर था. उन दिनों यह इलाका बर्डपुर इस्टेट के दायरे में ही आता था, इसलिए कस्बे का नाम पेपेगंज रखा गया. बाद में स्थानीय लोग इसे पीपीगंज कहकर पुकारने लगे, जबकि वह पीपीगंज नहीं बल्कि पेपेगंज है.
महाराजगंज का बृजमनगंज कस्बा (जो जॉन हॉल बृजमैन के नाम पर है)
महाराजगंज जिले में बृजमनगंज कस्बा पड़ता है. अंग्रेज अफसर जॉन हॉल बृजमैन ने ही बृजमनगंज की नींव रखी थी, जिसकी वजह से यह कस्बा उसके नाम से जाना जाता है. यही नहीं उनकी बेटी लैरा थी जिसके नाम पर उसने लैरा इस्टेट की स्थापना की थी, जिसको बाद में बदलकर लेहरा कर दिया गया था. हालांकि इतिहास में कुछ जगहों पर लेहरा का नाम अंग्रेज अफसर कैप्टन लेहर के नाम से पड़ने की बात कही जाती है.
गोरखपुर में बेतियाहाता का धर्मशाला (जो अंग्रेज अफसर के नाम पर है)
गोरखपुर शहर का मुख्य बाजार बेतियाहाता माना जाता है. यहां एक ऐतिहासिक इमारत खड़ी है, जिसे रीड साहब का धर्मशाला कहते हैं. दरअसल, इस इमारत की पहचान अंग्रेज अफसर ईए रीड के नाम से है. रीड ने 1839 में इस दुर्ग सरीखी इमारत को धर्मशाला के रूप में स्थापित किया था. इस वजह से इसे रीड साहब का धर्मशाला कहा जाने लगा. तब से लेकर आज तक यह इमारत उसी नाम से जाना जाता है.
गोरखपुर का कैंपियरगंज (जो अंग्रेज स्टेशन मास्टर के नाम पर पड़ा)
गोरखपुर जिले में कैंपियरगंज कस्बा पड़ता है. इसका नाम सुनकर ही पता चलता है कि बहुत अंग्रेजी वाला नाम है. इस कस्बे में जो रेलवे स्टेशन था, उसके स्टेशन मास्टर का नाम विलियम कैंपियर हार्गलस था. बस उन्हीं के नाम पर कस्बे का नाम भी कैंपियरगंज रख दिया गया था. कैंपियर की मौत को डेढ़ सौ साल से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन इतने सालों बाद भी उनका नाम एक कस्बे के रूप में जिंदा है.
गोरखपुर बर्डघाट (जो मजिस्ट्रेट बर्ड के नाम से जुड़ा है)
गोरखपुर में एक मुहल्ला बर्डघाट है, जो ब्रिटिश काल में जॉइंट मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात रहे अंग्रेज अफसर रॉबर्ट मर्टिंस बर्ड के नाम पर रखा गया था. गोरखपुर के लोग आजादी के 75 साल बाद भी इस मुहल्ले को इसी नाम से जानते हैं. बाबू बंधु सिंह और मोहम्मद हसन जैसे आजादी के दीवानों ने डेढ़ सौ साल पहले इस अंग्रेज अफसर की कोठी जला दी थी और यहां से भागने के लिए मजबूर कर दिया था. लेकिन उस अफसर के नाम पर बर्डघाट मुहल्ला आज भी कायम है.