जयपुर: हमारे देश भारत में तकरीबन 400 से भी ज्यादा छोटी-बड़ी नदियां बहती हैं. इन नदियों का देश के धर्म और संस्कृति समेत अर्थव्यवस्था में भी अहम योगदान है. यह नदियां आमतौर पर पहाड़ों से निकलती हैं तो आखिर पड़ाव में किसी समुद्र में जाकर मिल जाती हैं. जैसे हिमालय के गंगोत्री (Gangotri) से निकली गंगा नदी (Ganga River) गंगा सागर में मिल जाती है. लेकिन हमारे देश में एक ऐसी नदी भी है, जो निकलती तो पहाड़ों से है, लेकिन किसी समुद्र (Sea) में नहीं मिलती. जी हां हम बात कर रहे हैं लूणी नदी की.
लूणी नदी का उद्गम राजस्थान के अजमेर जिले में 772 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नाग की पहाड़ियों से होता है. ये नदी अजमेर से निकल कर दक्षिण-पश्चिम राजस्थान नागौर, जोधपुर, पाली, बाड़मेर, जालौर जिलों से होकर बहती हुई गुजरात के कच्छ ज़िले में प्रवेश करती है और कच्छ के रण में विलुप्त हो जाती है.
लूणी नदी के बहाव क्षेत्र को कहा जाता है नेड़ा या रेल
राजस्थान के जालोर जिले में लूणी नदी के बहाव क्षेत्र को नेड़ा या रेल कहते हैं. इसका प्रवाह क्षेत्र गोडवाड़ प्रदेश कहलाता है. महाकवि कालीदास ने लूणी नदी को अन्तः सलिला नदी कहा था. अजमेर की पुष्कर घाटी में लूणी नदी को साक्री नदी के नाम से भी जाना जाता है. जोवाई, सुकरी और जोजारी इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं. राजस्थान में सर्वाधिक नदियों वाला जिला उदयपुर है. बीकानेर और चूरू 2 मात्र ऐसे जिले है जिनमें एक भी नदी नहीं बहती है.
495 किलोमीटर लंबी है लूणी नदी
495 किलोमीटर लंबी यह नदी अपने क्षेत्र की एकमात्र प्रमुख नदी है, जो एक बड़े हिस्से की सिंचाई करती हुई गुजरात पहुंचती है. राजस्थान में इस नदी की कुल लंबाई 330 किलोमीटर है, जबकि इसका बाकी हिस्सा गुजरात में बहता है.
लूणी नदी की एक बेहद ही खास बात
लूणी नदी की एक बेहद ही खास बात है. अजमेर से लेकर बाड़मेर तक तो इस नदी का पानी मीठा है, जबकि इसके आगे निकलते ही इसका पानी खारा हो जाता है. इसकी वजह ये कि जब ये राजस्थान के रेगिस्तान से होकर गुजरती है तो उसमें मौजूद नमक के कण इसमें मिल जाते हैं तो पानी खारा हो जाता है.