कोलंबो: श्रीलंका (Sri Lanka) में आसमान छूती महंगाई (expensiveness) के विरोध में जनता सड़कों पर उतरने लगी है. सैकड़ों लोगों का हुजूम श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) के निजी आवास के बाहर पुलिस से भिड़ गया. भीड़ को संभालने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज, आंसू गैस के गोले और वाटर कैनन तक का इस्तेमाल करना पड़ा. हालात नहीं संभलने पर शुक्रवार की सुबह कोलंबो के कई हिस्सों में कर्फ्यू लगा दिया गया. प्रदर्शन के दौरान लोग बढ़ती कीमतों और कई घंटों तक बिजली गुल रहने के खिलाफ नारे लगा रहे थे. दरअसल भारत के इस पड़ोसी देश में फॉरेन एक्सचेंज की क्राइसिस के चलते संकट बढ़ता जा रहा है.
एक अधिकारी ने कहा कि देश में दशकों के बड़े आर्थिक संकट (Economic Crisis) के विरोध में कोलंबो के कई हिस्सों में हो रहे प्रदर्शनों के हिंसक रूप लेने से शुक्रवार की सुबह राजधानी में कर्फ्यू लगा दिया गया है. स्थनीय टीवी चैनलों के मुताबिक, लोग कोलंबो स्थित राष्ट्रपति के घर पर ‘गोटा वापस जाओ’ के नारे लगा रहे थे. डेली मिरर की वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भीड़ द्वारा बेरीकेड्स तोड़ने पर पुलिस को आंसू गैस के गोले और वाटर कैनन छोड़ने पड़े. वहीं लोग पुलिस पर पत्थर फेंक रहे थे.
गुरुवार को प्रकाशित डाटा के मुताबिक, मार्च में श्रीलंका में महंगाई लगभग 19 फीसदी बढ़ गई है जो एशिया में सबसे ज्यादा है. सरकार ने देश में बिजली कटौती रोजाना बढ़ाकर 13 घंटे तक कर दी है. डीजल की आपूर्ति बंद कर दी गई है और सरकार के पास इंपोर्ट के डॉलर कम पड़ रहे हैं.
राजपक्षे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) से लोन मांग रहे हैं, वहीं चीन, भारत और बांग्लादेश सहित कई देशों से सहायता की भी मांग कर रहे हैं. श्रीलंका में ब्याज दरें बढ़ा दी गई हैं, रुपये का अवमूल्यन कर दिया गया है. बिजली और फॉरेन करेंसी बचाने के लिए स्टॉक ट्रेडिंग के घंटे कम कर दिए गए हैं.
दिसंबर में श्रीलंका का व्यापार घाटा दोगुना होकर 1.1 अरब डॉलर हो गया था. फरवरी मे देश के पास 2.3 अरब डॉलर का फॉरेन रिजर्व था और जुलाई में 1 अरब डॉलर का बॉन्ड रिपेमेंट भी करना है.
फॉरेन करेंसी की कमी के चलते ही देश में ज्यादातर जरूरी सामानों दवा, पेट्रोल-डीजल का विदेशों से आयात नहीं हो पा रहा है. बीते दिनों आई रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कुकिंग गैस और बिजली की कमी के चलते करीब 1,000 बेकरी बंद हो चुकी हैं और जो बची हैं उनमें भी उत्पादन ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है.