हनुमानगढ़ (राजस्थान): आज के इस भागदौड़ भरी जिंदगी जहां एक इंसान को अपने लिया समय नहीं है, वहीं हनुमानगढ़ के युवाओं ने एक अनूठी पहल की है. इन युवाओं एक साल से गरीब तबके बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है. इन सब में एक खास बात यह है कि युवाओं ने इन बच्चों का नाम नन्हे पंछी रखा है. इन छोटे पक्षियों को शिक्षित किया जा रहा है और उड़ना सिखाया जा रहा है.
युवाओं की अनूठी पहल
हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय में रहने वाले युवाओं की इस पहल से अब तक करीब 200 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर स्कूल पहुंच चुके हैं. ‘पार्क वाला स्कूल’ के नाम से मशहूर इनिशिएटिव ऑफ लिटिल बर्ड्स (Initiative of Little Birds) के संस्थापक सदस्य सहज कामरा ने इन बच्चों को शिक्षा की ओर ले जाने का संकल्प लेते हुए दो बच्चों को आपस में झगड़ते देख इस अभियान की शुरुआत की थी. चिल्ड्रन पार्क में 2 बच्चों के साथ की गई शुरुआत के बाद बच्चे जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया. सहज की शुरुआत के बाद वहां घूमने आने वाले कई लोगों ने सहज की शुरुआत को न सिर्फ सराहा बल्कि आगे बढ़कर साथ खड़े हुए और मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए वक्त भी निकाला.
नन्हे पंछी
धीरे-धीरे झुग्गी-झोपड़ियों में और मजदूर वर्ग के संपर्क में आकर उन्हें बड़ी मुश्किल से उन बच्चों को पढ़ाने के लिए राजी किया गया. शुरुआती मुश्किलों के बाद कारवां शुरू हुआ और अब तक 200 बच्चे इस अभियान से जुड़ चुके हैं. बच्चों को अधिक से अधिक अभियान से जोड़ने के लिए ये सदस्य गरीब तबके के पास जाते हैं और फिर भी उन परिवारों से बात करते हैं ,जिनके बच्चे अभी भी शिक्षा से वंचित हैं. नन्हे पंक्षी ग्रुप से पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने जीवन में स्कूल देखा तक नहीं था. संस्था सदस्य इस बच्चों को होमवर्क से लेकर टेस्ट भी रोजाना देते हैं. इस अभियान की शुरुआत अगस्त 2020 में की गई थी. जो बच्चे पढ़ाई के नाम पर क, ख, ग भी नहीं जानते थे, वे अब किसी बड़े या महंगे स्कूल में चले गए, उन्होंने न केवल पढ़ना-लिखना सीखा, बल्कि बच्चों की नन्ही आंखों ने भी सुनहरे सपने बुनें.
मजदूर परिवार की एक लड़की ने बताया कि उसे पढ़ाई का शौक था लेकिन पारिवारिक समस्याओं के कारण वह कभी स्कूल नहीं जा सकी लेकिन इन युवकों की मदद से वह न केवल शिक्षा प्राप्त कर रही है बल्कि अब वह बड़ी होकर डॉक्टर बनेगी. संस्था सदस्य ने बताया कि ये ऐसे बच्चे हैं जिनके अभिभावक मजदूरी या भिक्षा वृति से जीवन यापन करते हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि अगर बच्चा स्कूल जाएगा तो उनका काम बंद हो जाएगा. ऐसे बच्चे अक्सर शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. उनका प्रयास है कि इन बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि पैदा हो और वे पढ़ना-लिखना सीखें ताकि उन्हें स्कूल में प्रवेश करते समय किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े.