भदोही: कालीन बुनाई (Carpet Weaving) में इस्तेमाल होने वाले रेशम (Silk) के धागे की कीमत में अप्रत्याशित उछाल (Rise in the price of silk thread) ने कालीन उत्पादकों की नींद उड़ा दी है. रेशमी कालीन निर्यात करने वाले उत्पादकों के सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है. अमेरिका, जर्मनी समेत दुनिया के कई देशों में इन दिनों रेशम से बने कालीनों की मांग ज्यादा है. ऐसे में भदोही के 80 फीसदी निर्यातकों ने रेशम के कालीनों का उत्पादन शुरू कर दिया है. इससे रेशम के धागे की मांग बढ़ गई है.
निर्यातकों का कहना है कि महज चार महीने पहले रेशम के धागे की कीमत 1,150 रुपये प्रति किलो थी, जो बढ़कर 2100 हो गई है. जिस तरह से कीमत बढ़ रही है, उसे देखते हुए भविष्य में इसमें और बढ़ोतरी की संभावना है. इससे उत्पादन की लागत काफी बढ़ गई है, जिससे उत्पादकों को घाटा हो रहा है. इस संबंध में ऑल इंडिया कारपेट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (All India Carpet Manufacturers Association- AICMA) ने भारत सरकार को पत्र लिखकर कीमतों में कमी की मांग की है. एकमा के मानद सचिव असलम महबूब का कहना है कि रेशम के धागों से बने कालीनों का उत्पादन लंबे समय से होता आ रहा है लेकिन पिछले तीन-चार साल में इसकी मांग बढ़ गई है.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में 80 प्रतिशत निर्यातक रेशम के कालीनों का उत्पादन कर रहे हैं. रेशम के धागे कई प्रकार के होते हैं, लेकिन सबसे सस्ते धागे की कीमत वर्तमान में 2100 रुपये प्रति किलोग्राम है, जो पिछले चार महीने पहले 1150 रुपये थी. अचानक शत-प्रतिशत उछाल से कालीन निर्यातकों के सामने संकट खड़ा हो गया है. बताया कि देश में रेशम का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है, लेकिन रेशम के धागे और रेशम के कचरे का आयात श्रीलंका के जरिए चीन में किया जा रहा है. कीमतों में तेजी का यह मुख्य कारण है.