वाराणसी: रूस और यूक्रेन के बीच पिछले कई दिनों से युद्ध जारी है. ऐसे में वहां पढ़ाई कर रहे हजारों भारतीय बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया है. बता दें कि बाहर जाकर मेडिकल की पढ़ाई करने का सबसे बड़ा कारण होता है उसकी फीस. भारत की अपेक्षा दूसरे देशों में मेडिकल की पढ़ाई का खर्च बहुत कम है. जिसके चलते कई बच्चे विदेश में जाकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं.
छात्रों ने सरकार पर जताया भरोसा
बता दें कि रविवार को सीएम आवास पर सीएम योगी उन बच्चों से मिले, जिन्हें सरकार यूक्रेन से सकुशल वापस ले आई है. इस दौरान बाराबंकी के प्रज्जवल वर्मा ने बताया कि इंडियन एंबेसी ने उनकी बहुत मदद की. जनरल वीके सिंह लगातार छात्रों के संपर्क में रहे. वहीं छात्र सरकार पर भरोसा जताते हुए कह रहे हैं कि जैसे सीएम योगी और पीएम मोदी ने उन्हें यूक्रेन से सुरक्षित बाहर निकाला है, वैसे ही आगे की पढ़ाई के लिए भी जल्दी ही कोई रास्ता निकाल लेंगे.
मालूम हों कि विदेश से मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद बच्चों को भारत में ‘फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन’ देना होता है. इसे पास करने के बाद ही भारत में डॉक्टरी करने का लाइसेंस मिलता है और कैंडिडेट प्रैक्टिस कर सकता है. 300 नंबर की इस परीक्षा को पास करने के लिए मिनिमम 150 मार्क्स लाने होते हैं.
पोलैंड हो सकता है अच्छा विकल्प?
बता दें कि सड़क परिवहन राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने हाल ही में कहा था कि यूक्रेन से वापस आए जिन बच्चों की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई है, उनके लिए पोलैंड ने हाथ बढ़ाया है. वीके सिंह ने कहा कि पोलैंड के जिन लोगों से वह मिले, उन्होंने भारतीय बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा लेने की बात कही है. अब परिवहन राज्य मंत्री के इस बयान के बाद ये कयास लगाए जा रहे हैं कि पोलैंड सरकार छात्रों की पढ़ाई पूरी करने में मदद करेगा.
पढ़ाई की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई पीआईएल में मांग की गई है कि यूक्रेन से लौटने वाले मेडिकल स्टूडेंट्स को समायोजित करने के निर्देश दिए जाएं. इसी के साथ छात्रों को भारतीय मेडिकल कॉलेज में भारत की या फिर विदेश की डिग्री के साथ शिक्षा पूरी करने की अनुमति दी जाए.